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मिली साहा

Abstract Tragedy

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मिली साहा

Abstract Tragedy

थम गया है वक़्त

थम गया है वक़्त

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थम गया है वक़्त, 

इन सितारों की आगोश में,

ना जाने मेरा ये वजूद ही क्यों,

मुझको आज यूँ धिक्कार रहा है।।


खुद ही तो चुना था मैंने ये रास्ता ,

चाँद सितारों की महफ़िल से हो वास्ता,

फिर इस चमचमाहट के बीच रहकर भी,

क्यों खुद को तू अकेला महसूस कर रहा है।‌


कामयाबी की चमक ने मुझे घेरा,

फिर मन के आंगन में क्यों ऐसा अँधेरा,

ख्वाहिशों के पीछे तू दौड़ा हर रंग समेटने को,

पर तेरी महफिल का रंग फीका क्यों दिख रहा है।।


शायद अकेलेपन का होता यही रंग,

जो तूने खुद ही जोड़ लिया है अपने संग,

ये ऐशो आराम, ये महल बस यही तो है खुशी,

तेरी हर ख्वाहिश हो गई पूरी तो अब क्यों रो रहा है।।


मैं तेरा खुद का वजूद आज तन्हा हो गया,

तेरी अंधी दौड़ में शामिल होकर मैं भी पिस गया,

एक बार झाँककर देख आईने में क्या था तेरा किरदार,

तेरी मुट्ठी से सुकून का रेत भी अब पल पल फिसल रहा है।।


अभी वक़्त है लौट आ अपनी दुनिया में,

इस सितारों के जहाँ में, है तेरा कोई अपना नहीं,

खुशियाँ जो तुझे दिख रही वो ज़िंदगी की ख़ामोशी है,

जो हर लम्हा हर घड़ी तुझे बस अपनी ओर खींच रहा है।।


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