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ARVIND KUMAR SINGH

Romance

3  

ARVIND KUMAR SINGH

Romance

तेरी तड़प

तेरी तड़प

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तेरी तड़प ने हर जगह

मुझे बदनाम कर दिया

तो मैंने भी तेरी बेवफाई

को सरे आम कर दिया।


सहारा ढूंढता फिरता हूँ

अब न जाने कहां कहां

बदनाम गलियों का भी

मुझे सामान कर दिया।


हद ही कर गई थी तू

ऐ जलालत भरी सभा

बेकद्र ठुकरा के काम

मेरा तमाम कर दिया।


तब से कभी रात को

मैं सो भी नहीं पाया हूँ

इस कदर तेरी यादों ने

मुझे परेशान कर दिया।


अब न उगे मेरा दिन

न कभी रात होती है

तूने तो मेरा भटकना

सुबहो शाम कर दिया।


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