तेरे जिक्र से
तेरे जिक्र से
रूह मेरी मुस्काती है
दिल की हर तार सुर लगाती है
बस और क्या
मेरी खुशी की बकेट भर जाती है
इस अंदरूनी हरकतों से आँख छलक जाती है
मेरे बदन का आँगन फूल सा महकता है
ये जो रिश्ता है अपना
चन्दन सा सुंगन्धित रहे, मंदिर सा प्रदीप्त रहे
सूरज सा चमके
और तेरे जहन में भी मेरी यादों को भरे
तू भी मेरी झलक को तरसे
जब ये नज्म तुझ तक पहुँचे
तू खुद को रोक ना सके, मुझसे मिलने पुणे पहुँचे।

