STORYMIRROR

MANISHA JHA

Romance

4  

MANISHA JHA

Romance

मायूसी

मायूसी

1 min
405

मन की खिड़की बंद पड़ी थी,

पर्दे पे कुछ धूल जमीं थी


दरवाजा भी टूट रहा था,

साथ अपनों का छूट रहा था

ख़्वाबों का जो जाल बुना था,

मायूसे से झूल रहा था


कुछ तिनका को जोड़ तोड़कर,

जीने की जो राह बनी थी

गम के घने अँधेरे में वो,

फूट -फूट कर रो रही थी


रौशनी की कोई चाह नहीं थी,

पास मेरे सिर्फ मेरी साँस बची थी

धू -धू कर जो जल रही थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance