तेरे जीवन का दोषी
तेरे जीवन का दोषी
कैसे लिख दूँ इन पन्नों पर
अपने इस दिल की तन्हाई,
तुम जो अब नहीं हो तो
पुरानी यादें लौट कर आई।
तुम्हारी जिन्दगी का अंत
कभी हमने सोचा न था,
तुम अपनी ही जान ले लोगी
हमने कभी परखा न था।
ये कैसा दंड दीया है तुमने?
बिन बोले मर जाने का,
ये कैसा दंड दीया है तुमने?
बिन चाहे छोड़ जाने का।
क्या जीवन की रोशनी
इतनी फिकी पड़ गई,
कि मौत के गहरे अंधेरे में
तुम अपने आप को खो गई ?
वक़्त के छोर पे अकेला छोड़ा हमने
महसूस न कर सका तेरा दिल दर्दभरा,
खून से ना रंगे और ना ही जान ली हमने,
इस आत्महत्या का दोषी में तेरा खूनी हत्यारा।