एक बुजुर्ग की व्यथा
एक बुजुर्ग की व्यथा
आज एक बुजुर्ग के पास जाकर बैठा,
थोड़ी देर बाद हाल-चाल पूछ बैठा।
आँखों में आँसू भरकर वो तो मुझसे बोले,
राज बुढ़ापे का आज मुझसे खोले।
काँप रहा हाथ डगमगाता है पाँव मेरा,
दिनचर्या को मेरे बीमारियों ने घेरा।
हो पाता न कुछ समय से मुझसे बुढ़ापे में,
परदेस में औलाद ने डाला है डेरा।
ये घर बनाया था कि खुशहाल रहेंगे,
अपनों के संग रहकर दुःख न सहेंगे।
वीरान घर दौड़ता है मुझे काटने को,
औलाद से ये बात फिर भी न कहेंगे।
वक़्त ही उनको बुढ़ापे तक लाएगा,
इस बाप का भी दर्द उन्हें समझ आएगा।