शब से शबनम की महेक नहीं आती
शब से शबनम की महेक नहीं आती
आज सफ़ेद रंग क्या पहन लिया,
तुमने तो हमे बेरंग कह लदया,
जब महफिले हमसे रंगीन थी,
तो फिर आज कैसे कह दिया कि
तुम्हारे शब से शबनम की महक नहीं आती ।
आज हमारे जनाज़े को हाथ क्या दिया?
तुमने तो हमें अंजान अजनबी बना लिया,
जब हाथ पकड़कर वादे किए थे,
तो फिर आज कैसे कह दिया की,
तुम्हारे शब से शबनम की महक नहीं आती ।
आज हमें शबवाहीनी में क्या बैठा दिया?
तुमने तो आखरी अिलवदा तक ना किया,
जब हमारी फटफटी पे बैठकर वादियां देखते थे,
तो फिर आज कैसे कह दिया की,
तुम्हारे शब से शबनम की महक नहीं आती ।
आज हमसे धुआँ क्या निकला,
तुमने तो हमें नफ़रत का धुआँ मान लिया,
जब कसमों में दुआऐं हमारी थी,
तो फिर आज कैसे कह दिया कि
तुम्हारे शब से शबनम की महक नहीं आती ।
आज ताप - संताप से पश्चाताप क्या ले लिया?
तुमने तो मोह माया से परे साधु कह दिया,
जब हमारी बातें मोहब्बत से भरी थी,
तो फिर आज कैसे कह दिया की,
तुम्हारे शब से शबनम की महक नहीं आती ।
जब तुम्हारे लिए मन्नत मांगी थी,
जब तुम्हारे लिए किस्मत जागी थी,
जब तुम्हारे लिए जन्नत तक त्याग दी थी,
तो फिर आज कैसे कह दिया की,
तुम्हारे शब से शबनम की महक नहीं आती ।
चलो जनाब हमने मान लिया की,
अब हम ना ही इस जहाँ का हिस्सा हैं
और ना ही किसी कहानी का किस्सा हैं
और ना ही किसी खयालों या यादों में बसे हैं
मैं मानता हूँ कि जीवन एक छलावा था जिसके पीछे हम भागते थे,
मगर हमें इतना भी दूर मत कर देना कि,
जब अगली बार मिलो तो मुँह दिखा ना सको,
तब शायद तुम्हें यह कहना पड़ जाए कि,
तुम्हारे शब से शबनम की महक आज भी आती ।