तारीफ़ हज़म नहीं होती
तारीफ़ हज़म नहीं होती
बातों से हमें आसमां में उठाया उन्होंने
पलकों पर अपनी कैसे बैठाया तूने
मीठी - मीठी बातों के उतारकर तीर
कैसे जगा दी आज हमारी तकदीर
अच्छे - अच्छे शब्दों से लगा रहे हो मलाई
क्या इरादा है आपका करनी है हमारी धुलाई
मत करो हम पर ऐसा कोई रहम
तारीफ़ हज़म नहीं होती ये होती बेरहम
जब आप लग जाते हो हमारे गुण - गाने
लगता है बिन - बात मक्खन लगे हो लगाने
कश्मकश में आप की बातों से है उलझ जाते
क्या सच में दिल से हमें हो ये शब्द आप सुनाते
इतना प्यारा बोल है संभालो जरा इसे
क्यों खाई में हमें हो धकेलना चाहते
कहां से भारी - भरकम शब्द हो ढूंढ कर लाते
तारीफ़ हज़म नहीं होती क्या ये भी नहीं समझ पाते
चाहते है आप उतारो हम पर जहरीले बाण
कठोर शब्द आपके चाहे हर ले हमारे प्राण
अच्छे शब्द हमें आपके बुरे है लग जाते
चुभ कर अंदर हमारे दर्द को है ये जगाते
मस्ती में हो मस्त जीना चाहते बन मस्तराम
करते हो आप हम संग नहीं चाहिये ये काम
करना है तो कर दो हम पर एक अहसान
तारीफ़ हज़म नहीं होती नहीं चाहिये ये मान।
