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Rajeev Tripathi

Romance Tragedy

4.5  

Rajeev Tripathi

Romance Tragedy

सज़ा

सज़ा

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350


यूंँ तो ज़िन्दगी हम अपनी शर्तों पर जिए हैं 

बहुत अफ़सोस होता है

हम इतना भी क्यों जिए हैं

ज़िन्दगी के सवालों का हमारे पास

कोई जवाब नहीं

और जिनके पास जवाब है 

वो हीं सवाल हुए हैं

चेहरे पर जिनके कोई भाव नहीं आता

ऐसे पत्थर भी हमारे मसीहा हुए हैं

ग़ुरूर उनको भी है बहुत अपनी रईसी का

दिल से जो बहुत निर्धन हुए हैं

हम ना मिलते उनसे तो बहुत

अफ़सोस होता

समंदर भी मिलकर ही लहरों के हुए हैं

मैं अपनों से मिल नहीं सकता

ग़ैर से मिलकर तो वह मग़रूर हुए हैं

कहानियांँ वो हमारी हीं सुनाते हैं

ग़लतियांँ करके जो मशहूर हुए हैं

काश तुम्हारी जगह कोई और 

हमें मिल जाता

हम भी बराबरी से रुसवा हुए हैं

हमारा दामन इतना दाग़दार क्यों है

पाप तो बराबरी से हुए हैं

हमारी रुसवाईयों का तो यह आलम है

सारे गुनाहों की हम ही सज़ा हुए हैं।


   


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