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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

स्वतंत्र कविता

स्वतंत्र कविता

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यह भूल कर

ना सोचें ,

कविता की सरिता

कलकल ही बहती हैं !

बड़े शांत

मंथर गति से ,

पर्वत की श्रृंखला के

छोर से वह निकलती है !!


समाज के विषयों

को ,ही देख के

कविता भी अपना

रूप बदलती है !

लेखक के

क्रंदन की ,

परिस्थितियां देखकर

गति में

तीव्रता आती है !!


समय अनकूल

होता है ,

राहों में शायद

कोई अड़चन नहीं

मिलता कहीं !

आवध गतिओं से

चलके ,

शांत हो विशाल सिन्धु

की बाँहों में मिलता वहीँ !!


अच्छे दिनों की

बात पर ,

कविता घूँघट में

ही रहकर

कोई गीत सुनाएगी !

जब कोरोना

के कहरों ,से

यह कविता रूठेगी

तब एक सुनामी आएगी !!


कविता अपना

रूप बदल ,

गति में तीव्रता और

शंखनाद करके बतलाएगी !

कविता को दोष

नहीं देना ,

कान्तिकारी झंडे को

दसों दिशा फहराएगी !!



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