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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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स्वर्ग / नर्क

स्वर्ग / नर्क

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स्वर्ग और नर्क क्या है ये भला 

मन में आया जब यह विचार जरा 

कुछ दुविधा में उलझ गई 

निर्णय करना था कठिन 

क्या गलत क्या सही। 


देश में इक ओर तरक्की सब कर रहे 

विज्ञान के बढ़ते प्रभाव से गाँव भी अछूते न रहे 

मोबाइल से सिमट गया संसार कुछ बटनों पर

प्यार के नाम पर बस छलावा सा है रिश्तों में 


कामयाबी की रफ्तार को क्या कहें जनाब 

इमारतों के ऊँचे कद इक दिन छू लेगें आसमान 

जिनकी जेबों में हो पैसे की खनक 

उन्हें तो लगेगी ही यह धरती स्वर्ग


भूख से बदहाल गरीब से पूछो जरा 

इसी पैसे की कमी ने छीन लिया सुकून उसका 

पैसे के ही इस खेल ने तय किया यह नज़रिया 

मेरी दुविधा भी कुछ कम हुई 

ये संशय की गुत्थी भी सुलझ गई।


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