स्वप्न
स्वप्न


ये मेरे सुन्दर सपने क्यों
मुझको इतना तड़पाते हैं
बीते कल की यादें लेकर
रोज चले ये आते हैं
बीत चुका जो अब जीवन से
उस कल को साथ क्यों लाते हैं
जाते जाते इन आँखों से
नींद मेरी ले जाते हैं
खोये हुए वो प्यारे लम्हे
याद मुझे जब आते हैं
तड़प उठता है दिल मेरा
आँखें नम करके चले जाते हैं
ये दिल भी कैसा नादां है
जाने है सब मृगतृष्णा है
जिन खुशियों को अब तू ढूंढ रहा
सच नहीं हैं वो एक सपना हैं
मैं जानूँ, ये दिल भी जाने
वो दिन न अब वापस आयेंगे
जिन के संग से थीं खुशियाँ अपनी
नज़र कहीं अब न आयेंगे।