।। स्वालीन।।
।। स्वालीन।।
ढंग से ना बतला पाता तो ,
क्या मुझमें एहसास नहीं,
जो खुल कर ना जतलाता,
तो क्या मेरी आस नहीं,
देह वही है सोच वही ,
खुद से कुछ ज्यादा मिलता हूँ,
कितनी बातें हैं मेरे मन,
पर मन ही मन घुलता हूं ।।
माना प्रतिक्रिया कुछ धीमी,
जो है दिल की गहराई से,
धीरे धीरे सीख रहा हूँ ,
बोलना में अब अपनी आई से,
ऐसे ना मुझको तुम देखो,
ना समझो मुझको कच्चा है,
जो बचपन मुझमें दिखता है ,
मन मेरा अब भी बच्चा है।।
कुछ कम जान पाने पर मेरे,
क्यों दिखता इतना बवाल,
खोल पिटारा अपना देखो
अनुत्तरित हैं कितने सवाल ,
मेरी मनःस्थिति पर क्यों
तुम रह रह तरस दिखाते हो ,
तुम जो सक्षम बलशाली हो,
तब भी संयम खो जाते हो।।
छोड़ो मुझ पर तरस दिखाना,
बस तुम मेरे अब मित्र बनो,
हाँ मैं थोड़ा अलग लगूंगा ,
पर तुम मेरे जीवन चित्र बनो,
मैं खुद से ही लड़ कर जीतूंगा ,
ये देखेगा अब जग सारा ,
मेरी राह समझने को कभी,
तुम भी थोड़े तो विचित्र बनो ।।
ये कविता एक ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्ती/बच्चे की है।।आशा करता हूं आप खुद को उस के दर्द और कशमकश से जोड़ पायेंगे।।
