सूरज चाँद सा
सूरज चाँद सा




सोचता हूँ जब जब तुम्हें, मेरा रोम रोम महकता है
टहलता हूँ आने वाले पल में, बीते कल से बहलता है।
हर दिन नया सा लगता है, हर बात पहचानी लगती है
लिखता हूँ जब भी तेरे बारे में, तू और दीवानी लगती है।
सोचता हूँ जब जब तुम्हें, मेरा हर कदम बहकता है
संभलता हूँ ठोकर से जब, मन दामन से जा लिपटता है।
बहुत करार दिल को मिलता है, मौसम खुद बदलता है
भीगता हूँ दोपहर की धूप में, सूरज भी चाँद सा लगता है।