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Savita Verma Gazal

Romance

4  

Savita Verma Gazal

Romance

सुन री सखी

सुन री सखी

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सुन री सखी

चुटकी भर हल्दी थोड़ी दुब और

पीली सरसों का

खिला रूप।


चिट्टी लिख भेजी

अम्बर नेगया लिखा लगन

धरा का।

चहक उठी दसों दिशाएं

सुन सखी बसन्त आया।


ओढ़ चूनर धानी अंग अंग

छायी मादकता

चहक उठी दसों दिशाएं

सुन सखी बसन्त आया।


पत्ते खनके डाली डाली

गाये हो कोयल  

मतवाली।

चहक उठी देशों दिशाएं

सुन सखी बसन्त आया। 


ओ बैरी बिरहा छुप

ओट समय की।

अब न कोई चाह तेरी

गूंजी शहनाई आह गयी।

चहक उठी दसों दिशाएं

सुन री सखी बसन्त आया।


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