सुला रही हो।
सुला रही हो।
वाह आज फिर से तुम
मुझे सुला रही हो
ख्वाबों का इक हसीं जहां
इन आँखों में
फिर से सजा रही हो।।
बन बहार जीवन में आई
मग्न वक्त
खामोशी भी फुसफुसाई
पल पल रंग में रँगते गए तेरे
बदरंग से हम
संग तेरे हुए रंगीन घनेरे।।
हर हसरत, हर अरमां जां के
सिमट आगोश में तेरे
आ बांहों में बस गए मेरे
फिर कोई चाहत
और मेरे रूह की राहत
रह न सके कभी अधूरे।।
जो लम्हे गुजरे
ले हाथों में हाथ तेरे
वह सुकून देने वाले रहे
सारी यह जो गति रही
मंजिल समेट पास वह लाई
जहाँ बिखरे हैं हसीन सुनहरे अंधेरे।।
गुम होना है बस यहाँ
तुम न हो फिर शायद वहाँ
बिन तुम कैसा चैन,
वजूद साँसों से सहला रही हो
अहा, आज फिर से मुझे सुला रही हो।।