सुखी बनेगा सारा संसार
सुखी बनेगा सारा संसार


जब अन्तर्मन में देखा, तब हुआ यही एहसास
अधूरी रहती है सदा, अपनी इन्द्रियों की प्यास
कितना भी सुख भोगें, फिर भी चाहते भोगना
रोग बना यह लाइलाज, दिन दूना और चौगुना
होती रहती है अनुभूति, पाकर भी ना पाने की
इच्छा जगती पाने से, और भी ज्यादा पाने की
केवल यही एहसास, दुख को देता है निमन्त्रण
रह ना पाता जब, इच्छाओं पर कोई नियन्त्रण
सब बुराइयों को हमारी, इच्छाएं ही जन्म देती
सुकून हमारा छीनकर, नींद भी चोरी कर लेती
भोग भोगकर हो गए सभी, इन्द्रियों के गुलाम
इसी आदत का चुकाते हम, रोगी बनकर दाम
विनाशी इच्छाओं को, दिल में कभी ना पालो
इन्द्रियजीत बनकर, भौतिक इच्छाएं मिटा लो
वही कर्म करो जिससे, हो जाए आत्म उत्थान
सारे संसार को देते जाओ, सुख शांति का दान
मिलेगा तुम्हें सुकून, और बेचैनी मिट जायेगी
सच्ची शांति आपके, जीवन में आती जायेगी
नष्ट हो जायेंगे दुख सभी, सुख पाओगे अपार
केवल तुम्हारे कारण, सुखी बनेगा सारा संसार !