सुहाना भ्रम
सुहाना भ्रम
दरवाजे की दस्तक
जब जब होती है
दिल में जैसे कुछ
चट्टान सा टूटता है
हर बार यही लगता है
कि शायद वो आये!
और दौड़ आती हूँ मैं
नंगे पाँव छत की सीढ़ियों से
मेरा दुपट्टा कई-कई बार
फंसता है जगह-जगह
साँसे तेज होने लगती है।
गुजरती हुई मैं कमरे से
आईने में देखती हूँ ।
उँगलियों से बालों की लटें
ठीक करती हुई दौड़ती हूँ
और दरवाजे के करीब आकर
रूक कर मुस्कुराती हूँ।
सट कर दरवाजे से
अपने दिल पर हाथ रख
अपनी साँसे रोकती हूँ
फिर खोल कर दरवाजा
जब पर्दा खिंचती हूँ
तो सामने कोई नहीं होता
सुहाने भ्रम के सिवा