सतयुग के कलंक
सतयुग के कलंक
चोरी, चाकरी और मकारी,
थे कभी, सतयुग के जो कलंक,
हैं, यह आज का सच्,
और जीवन का सारांश,
हो चाहे काम - काज,
या रिश्तों की पहचान,
इस के बिना कोई यश नही,
ना कोई असल मकाम,
मनुखता का हर अहसास।।
इसी सोच से गृहस्थ है,
चोरी, चाकरी और मकारी,
थे कभी, सतयुग के जो कलंक,
हैं, यह आज का सच्,
और जीवन का सारांश,
हो चाहे काम - काज,
या रिश्तों की पहचान,
इस के बिना कोई यश नही,
ना कोई असल मकाम,
मनुखता का हर अहसास।।
इसी सोच से गृहस्थ है,