स्त्री
स्त्री
छोटा सा परिवार था एक
माँ थी, बेटा था बहु थी
प्यार उनमे था बहुत
किसी चीज की न कमी थी।
बहु का मीना नाम था
सेवा बहुत करती थी वो
सास बहुत बीमार रहती
माँ की तरह रखती थी वो।
घर का सारा काम करके
बच्चों को स्कूल ले जाती
पति ऑफिस से वापिस आता
प्यार से खाना खिलाती।
पड़ोस में एक शर्मा जी थे
बहन उसको मानते थे
एक शहर से वो दोनों
पहले से वो जानते थे।
एक दिन मार्किट में थे वो
सामान साथ साथ लिया था
स्कूटर पर मीणा को बिठाया
घर पर ला कर छोड़ दिया था।
मीणा और शर्मा जी खड़े
हंस के बातें कर रहे
उनके मन में खोट न था
इसलिए न डर रहे।
सास ने देखा था ये जब
मीना पर शक करने लगी
शाम को बेटे से कह दी
बात तब बढ़ने लगी।
अगले दिन शर्मा जी आये
राखी का त्यौहार था
कहते मीना राखी बांधो
ये बहन भाई का प्यार था।
मीना ने थी राखी बांधी
मन से वो था रिश्ता पक्का
तुम हो मेरे सच्चे भाई
मान तुमने मेरा रक्खा।
त्रेता बीता कलयुग आया
कुछ भी न है बदला अब तक
सीता की ये अग्निपरीक्षा
चलती रहेगी जाने कब तक।