स्त्री
स्त्री
बेहद चुपचाप वो रहती है
शायद ख़ामोशी से ही दोस्ती कर ली है,
जरुरतें उसकी भी बहुत है
पर मांग ज्यादा नहीं करती है,
बेशक उसपे है पाबंदियां चढ़ी हुई
पर वो कभी अपना लिहाज नहीं भूलती है,
पति का बटुआ आंखों के सामने रहता है
पर वो कभी हाथ नहीं लगाती है।
हां वो स्त्री है
जरुरतों से ज्यादा वो चरित्र को महत्व देती है।