स्त्री की वेदना
स्त्री की वेदना
है कैसी ये वेदना तेरी
है कैसी ये तपस्या तेरी।
तू हमेशा पराया घर का है कहलाई
फिर भी तू मां, बहन और पत्नी है कहलाई।
मिला ना तुमको अस्तित्व का वो दर्ज़ा
फिर भी तू उनके लिए करती है पर्दा।
तेरे है अनेकों रूप देवी है तू कहलाई
फिर भी तेरे उसी रूप में कीचड़ है उछलाई।
ना जाने कितनी सीता शक के दायरे में है आई
ना जाने कितनी पवित्रता कुल्टा है कहलाई।
ना जाने कितनी गन्दगी की, की तू सफाई
फिर भी तू अब भी अबला ही कहलाई।