सती प्रथा...
सती प्रथा...


रातों के अंधेरों में एक चीख़ पुकार सुनी
वो विधवा हुई ये आह सुनी
सोनिया ले गए संग शमशान उसे
धकेलते नोचते रुलाते उसे
वो डरी सी सहमी सी संग चलती गयी
शैय्या बिछायी लकड़ी की
लाश बिछायी पति की
साथ में ज़बरन बिठा
लगा दी आग थी
ज़िंदगी मरने के बाद नहीं
ज़िंदगी मौन बना
झोंक दी आग की लपटों में
बोल, ये सती प्रथा है।