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Sachin Gupta

Classics Inspirational Children

4  

Sachin Gupta

Classics Inspirational Children

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना

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तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं,माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


क्या जानु मैं वंदना तेरी माँ शारदे

जग में छाया जो तेरा प्रकाश है

पर देख न पाता तुझको कोई माँ शारदे

तेरे अंदर जो इतना प्रकाश है।


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है।

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

जानु तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है 

विवेक की आंधी, तोड़ती मुझे हर बार है।


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


अदृश्य है तू अदृश्य है

मेरे नैनो से परे,

तू अदृश्य है,

पर जग में तू सबसे महान है

तेरे ही गुण से चलता जग – संसार है।


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


तेरी कृपा हो जिस पर

बनता वो ही महान है

क्यूंकि तू हीं तो बिद्या का भंडार है

तेरे चरणों में झुकता संसार है। 


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


आ गईं जो कृपा तेरी जिस पर

वो ही गाता तेरा गुणगान है

कर रहा हुँ मैं भी वंदना तेरी

शायद मेरे चित में तू विद्धमान है।


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


मैं था अज्ञान,

मैं था मूर्ख,

न जानता था महिमा तेरी

पाया ज्ञान जो,

कर रहा हुँ मैं भी अब,गुणगान तेरा

क्यूंकि शायद

मेरे चित में अब तू विद्धमान है।


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।


अब काव्य की क्या बात करू, माँ शारदे

मेरे हर काव्य में 

तू ही विद्धमान है।

तभी तो सचिन,

एक साधारण सा सैनिक

लिख रहा तेरा गुणगान है

इसलिये माँ शारदे

जग में होती रहती तेरी जय -जयकार है।


तेरे चरण रज माँ शारदे

कण – कण में विद्धमान है

ढूँढूँ तुझे कैसे मैं, माँ शारदे

मानव मन तो गज सा समान है।      


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