सरकती रेत
सरकती रेत
सरकती रेत के मानिंद हुआ जा रहा हूँ मैं,
अपने हाथों से अब निकला जा रहा हूँ मैं,
बेखुदी में तलाश करता रहा हूँ तेरा वज़ूद,
खुद की हस्ती से यूँ दूर चला जा रहा हूँ मैं,
जला दी है उसने जो मेरी यादें भी ताहम,
धुआं हुआ फ़िज़ाओं में उड़ा जा रहा हूँ मैं,
हर महीने सर उठाती ज़िंदगी की ज़रूरतें,
आसान किश्तों में अब बिका जा रहा हूँ मैं,
ऐसा भी नहीं कि रहा ना इंतज़ार किसीको,
तेरे शहर के मैखानों में ढूढ़ा जा रहा हूँ मैं,
कोई सुराग मयस्सर ना था शिनाख्त के लिए,
शायद गुमशुदा बशर में गिना जा रहा हूँ मैं,
मेरी चलती सांसें इक फरेब है तेरी नज़र का,
जीने की आरज़ू में तो रोज़ मरा जा रहा हूँ मैं,
तुम्हारे क़ौल से फिरता है यहाँ कौन कम्बख्त,
इक अरसे से खामोशियाँ सुनता जा रहा हूँ मैं,
'दक्ष' इतना जो बे-नियाज़ है वो इस ख़्याल से,
कहता हूँ क्या और क्या समझा जा रहा हूँ मैं...