सर्दी की धूप
सर्दी की धूप
बादलों को थोड़ा परे हटा कर
चमका ज्यों सूरज अंबर से
सर सर सरकी कोहरे की चादर
खिली सर्दी की धूप जो फिर से
सूरजमुखी ने अपने पिया को
जी भर कर मुस्काकर देखा
मिला नज़रों से नज़र सजन से
दिनभर किया सूरज का पीछा
गुनगुनी धूप इस नादानी पर
खोल के दिल हँसती जाती है
सूरजमुखी को छोड़ धरा पर
सूरज के संग घर जाती है
हँसी ठिठोली आँख मिचौली
धूप की दिन दिन बढ़ती जाती
ज्यों ज्यों सर्दी गहराती है
इसकी शरारत और बढ़ जाती।
