सर्द मौसम
सर्द मौसम
सर्द मौसम पसर गया है लोगों के मन के अंदर भी।
हर रिश्ते ठंडे पढ़ते जा रहे हैं
उन्हें भी तो गर्मी की जरूरत थी।
नजदीक आकर भी वह मुंह फेरकर चले गए।
देख कर भी वह अनदेखा सा कर गए।
इस सर्द मौसम में अपने होकर भी वह,
ढांपकर शॉल में मुंह अपना
बेगाने से आगे निकल गए।
शीत ऋतु तो जा रही है वसंत ऋतु की ओर।
खिल जाएंगे फूल, खुशियां छा जाएंगी चहुं ओर ।
लेकिन मन में और रिश्तों में छाई ठंडके।
क्यों भला रह गई सदा के लिए वह यूं ही पसर के।
कुछ कोशिश तो कीजिए मौसम बदलने का।
बेजान ऋतुओं को भी अपने कर्तव्य का भान है।
समय आते ही वह दूसरी ऋतु को देती खुद का स्थान है,
मौसम बदलते रहते हैं, प्रकृति रंग बदलती है।
सर्द मौसम को ही कहां वह हर वक्त रखती है।
मानव डट जा अपने कर्तव्य पथ पर,
अपनों का हाथ थाम ले।
लोभ, मोह, क्रोध और ईर्ष्या को छोड़कर,
अपने रिश्तों की डोर को तू थाम ले।
भले ही जीवन में आए सर्द मौसम भी लेकिन,
सर्द मौसम से वसंत की और तू उड़ान ले।
