सर्द हवाएं मस्त फिज़ाएँ
सर्द हवाएं मस्त फिज़ाएँ
कोहरे का धवल घूंघट,
हौले से उतार कर।
चम्पई रंग के फूलों से,
अवनी का सिंगार कर।
सर्द हवाएं सन सन चल रही
ठंड में भी मदमस्त फिज़ा हुयी ।
प्यार में बेताब अम्बर ने
धरती को जब हौले से छुआ।
गुलाबी सी मीठी ठंडक लिए,
हाय महीना दिसम्बर हुआ।
लो आ गया अपने अंक में,
मेरे हमनवा का शुभ जन्मदिन लिए,
मेरा प्रिय महीना दिसंबर का।
धूप गुनगुनाने लगी दूरियां खटकने लगी,
शीत मुस्कुराने लगी नजदिकियां माने लगी।
मौसम की ये खुमारी हृदय की धड़कन में
इश्क की मदहोशी का रस मिलाकर
मन को भरमाने लगी तुमसे
अब दूरी सही जाती नहीं हमदम।
अलाव की आग से अब ठंड मिटती नहीं
चाय की गर्माहट हथेली को
तेरी छुअन का अहसास कराती रही ,
चाय का मीठापन भी जब कमतर सा लगा,
तो तुम आये तेरी हंसी की खनक
से कड़ाके की ठंडभी गुलाबी हुयी।
ठंडक में सर्द हवा भी तुझे छुकर
मानो गर्म लू में बदल गयी
मस्त फिज़ाएँ सर्द हवाएं अपने दामन में लिए ,
हाय देखो महीना दिसम्बर का हुआ।
हवायें हुई कुछ चंचल हमनशी सी
मृगांक भी हुआ जरा जरा सा शबनमी
मयूर दादुर पपीहा सकुचा और शर्म से
खुद में ही सिमट गए,
प्रीत हुई बेकल राह हुयी रेशमी।
बातों ही बातों में जब नज़रों ही नज़रों,
में दिन हुआ कहीं उड़नछू ।
गुलाबी सी प्रीत अंक में लिए
सर्द हवाएं संग लिए बावरा मन
मस्त फिज़ाओं में तेरे लिए देखो
फिर से बेताब हुआ क्योंकि हाय लो जी,
सर्द हवाएं लिए महीना दिसम्बर का आ गया।