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Vigyan Prakash

Romance

4  

Vigyan Prakash

Romance

स्पर्श

स्पर्श

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बड़ा जुल्म है की आज तुझे फिर वापस जाना है, 

की क्या ये नहीं हो सकता की तू मेरे कंधे पर सर रखे शाम को रात और रात को सुबह कर दे!

क्या ये जरुरी है की तुझे हर दफा बताना पड़े की मैं तुझसे कितना प्यार करता हूँ,

बस इसलिए की मैं तुम्हें पाँच मिनट और अपने पास रोक सकूँ!


क्या ये जरुरी है की हर बार तेरी पेशानी को चूमते मेरे हाथ कांपते हो,

और अगर काँपते भी हो तो ये तेरा अख्तियार है की तू उसे थाम कर शांत कर दे!


ये जरुरी तो नहीं की जब मैं खुदा की सबसे बेहतरीन नक्कासी को अपने हाथों से महसूस कर रहा हूँ,

तो मेरे हाथ जो बेतरतीबी से इधर-उधर चले जाते है बस तेरी खुबसूरत जुल्फ़ को ही सवारतें रह जाये!


ये जरुरी तो नहीं की तुम्हें चूम जब मैं तुझपर अपनी निशानियाँ बना रहा हूँ तो मेरी आँखें बंद हो जाये,

गोया कोई किसी सपने में खो गया हो,

होना तो ये था की मैं देखता की तेरे बदन पे मेरे होंठ कैसे दिखते है!


ये जरुरी तो नहीं की जब तू पुरे सुकून से मेरी गोद में सर रख सो रही हो तो वक़्त की पाबंदियाँ मुझे रोक दे,

कभी तो ऐसा होगा तू बस मेरी गोद में सोया रहेगा और हम तुझे देखते रहेंगे!


होना तो ये था की तेरे पैर पे बंधे काले धागे को अपने हाथों से छू 

मैं उसे दुआ देता की उसने तुझे इतने दिनों बुरी नज़र से बचाया,

फिर तुझे मेरी ही नज़र लग जाने के खयाल से मन मसोस मैं 

उस धागे से बात नहीं करता की मुझपर कुछ इल्जाम लगाये जायेंगे!


ये जरुरी तो नहीं की मैं तुम्हारे हाथ को पकड़ने को अपना हाथ तुम्हारी ओर बढाऊँ और तुम हर दफा उसे रोक दो,

फिर खुद ही मेरे हाथ को खींच अपनी उंगलियों के बीच भींच लो, और हर बार मुझे उसी सिहरन का एहसास हो!


ये जरुरी तो नहीं की मैं जितनी दफा तुमसे मोहब्बत करने तुम्हारे करीब आऊँ उतनी दफा रोक दिया जाऊँ,

मगर फिर तुम खुद अपने जज्बातों से हार खुद ही मुझे अपने पास बुला लो!


ये जरुरी तो नहीं की जब मैं अपनी उँगलियाँ तेरे होंठों पर रख रहा हूँ,

तो मुझे उनमे मुझे चूमने की बेचैनी का एहसास हो!

ये जरुरी तो नहीं की तेरे काँधे पे तिल देख मैं खुदा के सजदे करुँ,

की उसने इस अशआर के हर लफ्ज़ को नुक़्ते से नवाजा है!

ये सब जरुरी है...

सब जरुरी है...


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