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Vigyan Prakash

Classics

4  

Vigyan Prakash

Classics

अभिमन्यु

अभिमन्यु

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आज इस दावानल में

देखो हैं किसके चरण पड़े।


रक्त सनी इस भूमि में

ये सौम्य युवक क्यों गमन करे?


है लाज वंश की रखनी जो

बालक ने धनुष उठाया है।


व्यूह भेदने का कौशल

सीख के क्या तू आया है? 


छाती पे कितने चिन्ह घाव

बढ़ चले जो रणबांकुरे पांव।


मुझ नश्वर का क्या जाता है

जो आज ये तन मर जाता है?


करते शत्रु पर जो आघात

बढ़ चला वो जैसे वज्रपात।


ना जाने कितने शीष कटे

कितनो ने पाई वीरगती।


कितने मंत्री धराशायी हुए

और जाने कितने अश्वपति!


निश्चय ही काल जब आता है

कायर केवल घबराता है।


स्थान तुम्हारी अभिमन्यु

कोई महारथी लड़ सकता है।


यौवन न देखा जिस बालक ने

वो युद्ध समझ भी सकता है?


कोई संशय की स्थिति नहीं

संकल्प मेरा मेरा बल है।


क्षत्रिय जो मैं उत्पन्न हुआ

धर्म पुरुषार्थ ही केवल है।


क्या बात द्रोण की सेना की

जो इन्द्र स्वयं भी आये उतर


सेनापति गर जो रुद्र भी हो

तो युद्ध से मैं ना होउं मुखर।


पल भर भी बिना किये विश्राम

दे रहा वो शत्रु को विराम।


ये मात्र ना था बस कोई श्लेष

कर गया वो चक्रव्यूह में प्रवेश।


जितने महारथी थे व्यूह में बंद

था नजर उन्हें आता स्कंद।


ये कौन काल है टुट पड़ा?

इसका अभी यौवन ही तो है।


इस भीषण युद्ध में रत देखो

ये केवल बालक ही तो है!


देख उस बालक का प्रताप

खुद द्रोण भी रह से गये अवाक!


पर कार्य तो वही होता है

जिसका मुरलीधर द्योता है।


व्यूह भेदने में असफल

घिर आया अभिमन्यु सकल।


जो भाग रही सब सेना थी

अबतक बाणों की वर्षा से। 


अभिमन्यु के घिर जाने पे

लौट आई सकल कर्कश ध्वनी से।


छह महारथी मिलकर, सुकुमार

देखो युवक पे करते प्रहार।


है देखा ऐसा दृश्य कही

नृशंस क्रुर हो कृत्य सभी?


सब मिल बालक पर घात करें

बालक कैसे प्रतिघात करे?


था वीर सुभद्रापुत्र अत्यंत

तिस पर भी दिया जो वीर अंत!


पीठ पे की है जो कर्ण घात

छल से मारे जाओगे तात!


नहीं तुम में कोई युद्धवीर

लाओ दो तुम मेरा तुणिर।


बिन अस्त्र शस्त्र जो मारा है

तू योद्धा नहीं हत्यारा है!


देख पुत्र की ये प्रताप

सब पाण्डव कर रहे थे विलाप!


क्षत्रिय कर्तव्य के बन्धन में

रिश्तों को हारा जाता है?


होते हुए तात के भी रण में

क्या पुत्र भी मारा जाता है?


कर रहे थे युधिष्ठिर प्रलाप

क्या होगा अर्जुन को जवाब?


कैसे सुभद्रा को देखूँगा

क्या मैं वचन उसको दूँगा?


क्या बात उत्तरा से होगी?

जाने क्या उसपर बीतेगी?


था जो पुत्र गुणों का खान

ना जायेगा खाली बलिदान!


भीषण अब रण होगा

शत्रु वध अब तत्क्षण होगा!


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