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Vigyan Prakash

Tragedy

4.5  

Vigyan Prakash

Tragedy

कुत्तों का शत्रु

कुत्तों का शत्रु

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एक सुबह आयी 

उसकी मौत की खबर 

अखबार के साथ 

एक पल को झिझका 

दूजे पल अखबार को भींचे 

बढ़ा उसके आजीवन

निर्द्वन्द रहे आवास की ओर 

जहाँ सोते थे कई सितारे

उसके साथ 

और चाँद दिया करता था

पहरा सारी रात। 


वहाँ पहुँचने पे देखा 

एक मैं ही नहीं था

संवेदना से लिप्त 

कई और भी थे

जिन्हें काम से

फ़ुरसत थी। 


पता चला 

पेट कई दिनों से खाली था 

शायद पीठ से मिलने 

पीछे जा चुका था 

तलवे सूखी धरती के

प्रतिबिम्ब जान पड़ते थे 

लकीरों ने अजीब आकृतियाँ

बना रखी थी हर ओर 


इसी बीच ठंडी हवाओं के

थपेड़ों ने अपनी चाल चली

और काली स्याह रात में

गली के कुत्तों ने खो दिया 

अपना सबसे बड़ा शत्रु। 



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