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सपने

सपने

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बस सपने हैं जो मुफ्त में मिलते हैं,

इसलिए मैं सबसे बड़े स्वप्न देखती हूँ।


दूर हैं रास्ते और कठिनाइयाँ भी है,

गिर गई तो उठकर चलना भी है।


एक एक कदम चल कर ही सही,

हर कठिनाइयों का हल सोचती हूँ।


फर्क होता है हकीकत और सपनों में,

जाने क्या रखा है अपनों से ही लड़ने में,


तब सपनों को मारा अपनों के खातिर,

अब खुद को मरते हुए हर पल देखती हूँ।


इतनी कठिन राहें होगी सोचा भी न था,

चलते हुए रूक जाए मंजूर भी न था।


जिद है इन सपनों में निशान छोड़ने की,

अब इन राहों पर अपने पद चिन्ह देखती हूँ।


समझ नहीं सकता मेरे सपनों को कोई,

इन्हें खोने के डर से कई रात मैं ना सोई।


क्या है ये समझौता अब समझ नहीं आता,

सबकी बातों में समझौते का झलक देखती हूँ।


नाम को अपने मजबूत करना होगा,

भले ही डराए लोग पर ना डरना होगा।


सुना था पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है,

पर अब खुद को खोने का डर देखती हूँ।


वैसे हुनर तो सपनों को देखने में नहीं,

इसलिए मैं पूरे करने का जश्न देखती हूँ।


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