सफर जिंदगी का
सफर जिंदगी का
एक लौ चलती है अनजान सफर के लिए,
आसमां का सीना चीर कर,प्रदीप्त होती,
धरती की गोद में स्वयं की एक काया पाती,
एक माँ के कोख में नौ महीने फलती जिंदगी।
जन्म लेती, हँसती ,रोती, खेलती, पढ़ती,
स्वयं से अनजान,अनगिनत रिश्तों से घिरी,
जिंदगी की धूप छाँव को सहन कर बढ़ती,
खुद को सँवारती और निखारती जिंदगी।
पल पल कठिन परीक्षाओं से गुजर कर,
खुद को साबित करती, टूटकर, संजोकर,
पाप, पुण्य से कर्मों से फलीभूत होती,
दिन और रात के चक्र में घूमती जिंदगी।
अनचाहे पलों में जीती, मुसाफिर की तरह,
अनेक झंझावातों से जूझती, कभी ढह जाती,
बेखबर,अनजान राहों में,कभी फूल कभी शूल में,
कभी खुशियों के झूले में इठलाती जिंदगी।
पर्वत सी पीर सहती,अँजुरी भर खुशी सहेजती,
मतलबी दुनिया,पथरीले रास्ते,आकाश भर यादों संग,
पूरे ,कभी अधूरे सपनें ,मंजिल की चाह में भटकती,
नौ ग्रह के प्रभाव में,काल के आगे मजबूर होती जिंदगी।
पतझड़, सावन, बसंत, बहार, मिलन, जुदाई हर मौसम
ज्ञान, प्रेम, दया, विश्वास, सहयोग जैसे शुभ भाव,
माया, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा जैसे घिनौने कृत्य,
इन्द्रियों के वश में, कर्मानुसार कष्ट व सुख पाती जिंदगी।
पंच तत्वों से निर्मित, जटिल परिस्थितियों से लड़ती,
मानव जीवन के प्रपंचों से मुक्त हो, देह त्यागती,
अंत में मृत्युलोक में अपना समय पूर्ण कर वापस,
कर्मों की गठरी लिए अनजान सफर में चलती जिंदगी।
