नारी का वर्णन
नारी का वर्णन
तुम्हीं हो गर्व ब्रम्हा का, अमिय हो क्षीरसागर का,
अनल, नभ वायु जल पृथ्वी,तुम्हीं हो ओज दिनकर का।
सगुन,निर्गुण,सृजन तुमसे, सदा ही नेह न्योंछावर।
कहे यह बाइबिल गीता, तुम्हीं अल्लाह तुम ईश्वर।
मनुज औ देवता जन्में, बनी प्रतिबिंब जीवन का,
अलंकृत संस्कारों से, समर्पण त्याग तन मन का।
बहे उर कोष से करुणा, गिरे ज्यों नीर बादल से,
मिला है धैर्य धरती सा, छुपाती पीर आँचल से।
कभी हिम तो कभी पावक,समय अनुरूप ढलती हो,
कदम हर साथ नर के हो, दिवस निशि संग चलती हो।
हवस के जो पुजारी हैं, नहीं सम्मान कर पाते,
उन्हें हैं भोग सब लगते, बहन माता सभी नाते।
पड़ी जंजीर किस्मत पर, शिखर की राह पर ताला,
छुए आकाश जब नारी, जलेगी तेज तब ज्वाला।
बढ़ाकर हाथ अपना लो, मरे क्यों कोख में अम्बा।
बढ़ेगी वंश की बेला , हरे हर कष्ट जगदम्बा।
करुण श्रंगार या भय वीर लिखकर हार जाएगी,
कलम की एक सीमा है, कहाँ तक ये निभाएगी।
बिना नारी न नर पूरा, प्रणय के भाव सब खारे,
निपुण नारी अवर्णित है, झुकें खुद देव भी सारे।
