सोलमेट - मेरा हमसफ़र
सोलमेट - मेरा हमसफ़र
कभी हाथ पकड़ कर चलने की फरमाइश
करने को जी चाहता है तो कभी गले
लगकर दिल की कहने को।
कभी आसमां में तेरे गुमान में भर बैठें जो उड़न,
तेरे हाथों ने थामा हर मुश्किल हालातों में मेरा हाथ।
जी करता संग रहूं हरदम उसके,
पर वो दूर दूर तक दिखाई ना है पड़ता।
लगा था कइयों बार की उससे मुलाक़ात है हुई पर
हर बार हाथ मलते रह गए,
वो फरेब था नजरों का, शब्दों का
मेरा साथी मुझे रोता तो नहीं देख सकता,
मुझे रोशनी से अंधेरे में तो नहीं धकेल सकता।
वो भरोसा है मेरा, उससे ही सारी आस है,
मैं जानूं कब, कैसे कि किसके वो पास है।

