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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

सोचा नहीं कभी

सोचा नहीं कभी

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ना कोई शिकवा,

ना कोई शिकायत।

फिर भी परेशान,

ना कोई हिमायत।

क्या सहा अभी,

रुखसत-ए-जिंदगी,

फुर्सत-ए-गम,

सजदा बाकी अभी,

सोचा नहीं कभी,

हालात-ए-शहर,

मिलकर बिछड़ेंगे कभी।



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