संस्कृति का मूर्तरूप पुराण
संस्कृति का मूर्तरूप पुराण
भारतीय संस्कृत सहित्य सागर
है अनंत रत्नराशि से पूर्ण,
उन रत्नों में स्थान पुराणों का
है अत्यंत महत्वपूर्ण।
पुराण है अध्यात्म शास्त्र,दर्शनशास्त्र
पुराण धर्मशास्त्र है ,नीतिशास्त्र है,
पुराण कला शास्त्र है,पुराण इतिहास है
पुराण पूरा जीवनी - कोष है।
पुराण सनातन आर्य संस्कृति का स्वरूप है
वेद की सरस और सरलतम व्याख्या है ,
वेदों की मुख्य मुख्य बातों को,
पुराणों में कथाओं द्वारा बताया गया।
जिससे वेदों की गहरी बातें
सुगमता से मनुष्य की समझ में आ जायें,
आज विचार ,भाव ,अध्ययन ,शिक्षा, समय
सब बदल गए हम समझ नहीं पाते उनकी बातें।
चारों पुरुषार्थों का वर्णन
धर्म अर्थ काम मोक्ष का वर्णन
कर्मरहस्य,तीर्थ रहस्य, नक्षत्र विज्ञान
महत्त्वपूर्ण उपादेय विषय पुराणों में दिए गए।
महत्वपूर्ण विषयों पर गंभीर गवेषणा
सफल अनुसंधान कर सरल भाषा में समझाना,
पुराणों का ही काम है
पुराणों की ज्ञान परंपरा पर यथार्थ दृष्टिपात हो।
भगवत् कृपा से गीताप्रेस से अट्ठारह पुराणों का
सरल हिन्दी अनुवाद हमें पढ़ने को मिल रहा,
इन प्राचीन ग्रंथों का संरक्षण हो रहा
इनमें जगत की सृष्टि से प्रलय तक का वर्णन है।
श्रीमद् भागवत पुराण तो
श्रीभगवान् का वाड्.मय स्वरूप है ,
अत्यंत गौरवशाली भाषा में विचारों के क्षेत्र में
ऊँची से ऊँची चोटियों पर क़दम रखा है।
भारतीय संस्कृति में पुराणों के
अनंत ज्ञान राशि भंडार की महिमा है,
अष्टादश पुराणों में व्यास के ये दो वचन हैं
परोपकार पुण्य के लिए,पाप के लिए परपीड़न है।