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Sulakshana Mishra

Abstract

4.8  

Sulakshana Mishra

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संसार बचा लो...

संसार बचा लो...

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क्यूँ लिखूँ मैं कविता तुम पर

क्यूँ लिखूँ तुम पर

मैं कोई कहानी ?


बेटी ही तो हो तुम

जैसे होता है कोई बेटा

वैसी ही तो हो तुम।

क्यूँ करूँ मैं फर्क

क्यूँ बाँट दूँ मैं

ये दुनिया तुम्हारी ?


है हक़ बराबर का

बेटे का और बेटी का

क्यूँ कर दूँ मैं

एक को दूसरे पर भारी ?

हैं गाड़ी के दो पहिये


एक हटा तो 

दूजे के बस की न है

ये दुनियादारी।

जो साथ हैं दोनों

तो कट जाती है

हँसते मुस्कुराते


ये ज़िन्दगी सारी।

बेटी के बिना

सूना है आँगन

तो बिन बेटे के

कब पूरा होता जीवन ?


बेटी को देवी न बना दो

बस बेटे को इंसान बना लो

साथ रहना सीखा के

बचा सको तो

ये संसार बचा लो।


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