संसार बचा लो...
संसार बचा लो...
क्यूँ लिखूँ मैं कविता तुम पर
क्यूँ लिखूँ तुम पर
मैं कोई कहानी ?
बेटी ही तो हो तुम
जैसे होता है कोई बेटा
वैसी ही तो हो तुम।
क्यूँ करूँ मैं फर्क
क्यूँ बाँट दूँ मैं
ये दुनिया तुम्हारी ?
है हक़ बराबर का
बेटे का और बेटी का
क्यूँ कर दूँ मैं
एक को दूसरे पर भारी ?
हैं गाड़ी के दो पहिये
एक हटा तो
दूजे के बस की न है
ये दुनियादारी।
जो साथ हैं दोनों
तो कट जाती है
हँसते मुस्कुराते
ये ज़िन्दगी सारी।
बेटी के बिना
सूना है आँगन
तो बिन बेटे के
कब पूरा होता जीवन ?
बेटी को देवी न बना दो
बस बेटे को इंसान बना लो
साथ रहना सीखा के
बचा सको तो
ये संसार बचा लो।