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Usha Gupta

Tragedy

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Usha Gupta

Tragedy

संपन्नता

संपन्नता

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कर रहा बयां चित्र यह धन धान्य से परिपूर्ण,

गृह की दास्ताँ कि थी जवाँ महफ़िल यहाँ,

हो चुकी है समाप्त दावत संपन्न परिवार की,

 कुछ ही समय पहले अब जा चुके अतिथि सभी,

लिया होगा आनन्द भरपूर सभी ने उत्तम भोजन का, 

गया परोसा था जिन्हें अनन्य उत्कृष्ट पात्रों में,

बचा हुआ भोजन तश्तरियों में चाँदी के पड़ा दे रहा गवाही,

मेज़ पर विविध स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों का होगा आधिक्य।


हरे काँच के आकर्षक पात्र में रखा तरल पदार्थ है साक्ष्य,

बह रही होगी विभिन्न विशिष्ट प्रकारों की मदिरा की धारा,

कुछ खुले कुछ अधखुले बेतरतीबी से रखे आकर्षक बरतन,

कह रहे बेज़ुबान उस घर में बीती रात की अनकही कहानी,

कि सुरा के नायाब खूबसूरत पात्रों में रही होगी नायाब सुरा।

बढ़ा रहे शोभा अद्भुत चाँदी व काँच के बिखरे से बासन,

प्रत्यक्ष रूप से दिखा रहे छवि दर्पण, गृहस्वामी व स्वामिनी को ,

 है कलात्मक सुन्दर वस्तुओं की परख भलीभाँति,

 विलासिता की झलक से झिलमिला रहा सम्पूर्ण परिवेश।


धनाधिक्य को ही केवल नहीं कर रहा उजागर यह चित्र

वरन् दे रहा भरपूर परिचय अमीरों की मानसिकता का भी,

छोड़ना भोजन झूठा समझते धनवान प्रतीक सम्पन्नता का,

नहीं ज्ञात इन्हें भूखे पेट सोना पड़ता न जाने कितने बालकों कों,

हैं अनभिज्ञ धनवान इस सच्चाई से, जलते नहीं चूल्हे

कई-कई दिन उनके यहाँ, रहते जो सड़कों झोपड़-पट्टी में,

फेंक देते झूठन जितनी ये अमीर मिटा दें भूख अनेकों भूखों की।।


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