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Brijlala Rohanअन्वेषी

Comedy Horror Tragedy

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Comedy Horror Tragedy

संघर्षपूर्ण जिजीविषा

संघर्षपूर्ण जिजीविषा

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आज शाम मैंने एक बूढ़े इंसान की जिजीविषा देखी,

और सच कहूं तो पहली बार देखा कि संघर्ष

उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो सकता है।


देखा मैंने उस वृद्ध इंसान को जो

कँपकपाती हुई ठंड में ठेले पर रखी बर्तन में जल रही

अलाव पर अपने हाथों को सेंकता ठेले के सहारे खड़ा था,

जिस पर उसकी बची थी उसके हिस्सबे की

आज की बेचने की हरी - सब्जियाँ। 


मगर मैंने फिर सोचा कि क्या वास्तव में ये सब्जी ही बेच रहे हैं ?

इनकी इच्छा शायद ही कुछ कमा लेने की होगी ,

क्योंकि ये किस्मत के मारे बेचारे

उम्र के इस पड़ाव में क्या कमाने की तमन्ना होगी ?


लेकिन सच तो यही है कि वे कुछ बेच रहे थे तो कमाई होगी ही।

हाँ ! ये दो वक्त की रोटी कमा रहे थे,

जो उनके खून- पसीने की कीमत से उपजाई गई है।


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