न जाने किसकी सोच की उपज हूँ जो तेरे मन मे मै तुझसे कुछ कम हूँ न जाने किसकी सोच की उपज हूँ जो तेरे मन मे मै तुझसे कुछ कम हूँ
जो उनके खून- पसीने की कीमत से उपजाई गई है। जो उनके खून- पसीने की कीमत से उपजाई गई है।
अपने स्वार्थ में हम उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ आते हैं, अपने स्वार्थ में हम उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ आते हैं,
खलिहानों में उपज है आई, अन्न दाता घर खुशियां छाई।। खलिहानों में उपज है आई, अन्न दाता घर खुशियां छाई।।