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sarika k Aiwale

Abstract

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sarika k Aiwale

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न जाने किसकि सोच की उपज हूँ..

न जाने किसकि सोच की उपज हूँ..

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न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

हूँ तो मै भी एक इंसान ही फिर भी

तेरी समझ से परे हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

मै माँ तुझे भी तो मैने ही जन्म दिया

तुझे संस्कार और जीना सिखाया

फिर भी मै अनपढ गवार हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

हर बर तुझे प्यार से सहारा मैने

मै वो तेरी बहन हूँ.

जो तुझसे ज्यादा तुझे जानती हैं

तेरे हर कमयाबी पे आशिष बरसती है

तेरे लिये दुआ और कमयाबी चाहती है

फिरभी नासमझ ही ठहरी मै

तेरे समझ से परे हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ...

तेरे घर आंगण की रोशनी हूँ

तेरे हमसफर तेरी ब्यहता पत्नी हूँ मै

फिर भी मै ना जानती तुझे क्या कमी दिखे मुझमे ..

हर बार ताने और घुंघट की लकिरे मे में हूँ

फिर भी मै तेरे नश्वरता की कारण कैसे?

तेरे समझ से परे हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

मेरी हर एक पहचान तुझे से ही है

मेरे हर एक पहचान को तुझे ही सोपा हैं

> मेरे होने न होने की कायनात भी दखल ले

फिर भी तुझे ऊससे कोई गिला नही

तेरे समझ से परे हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

जखड जो रखे हैं मुझे हर जनम में रिशतो से

तेरे ऊस डर की पहचान हूँ मैं

परंपरा और संस्कृती के रचिता ओ पुरूष..

मैं वो आग हूँ जो तुझसे बुझ न पाऊ कभी

मैं वो राग हूँ जो तुझसे न जिता जाये कभी

हर बार मुझसे हार

फिरभी तुझे हैं गलत फहमी के हम हैं तेरे ही गुलाम

ना समझ हो जो न समझा हमे

तेरे समझ से परे हूँ

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

जो तेरे मन मे मै तुझसे कुछ कम हूँ

तेरे पतन कि रेखा हूँ अभागी हूँ.?

जो ऐसा सोचे वो तेरा वहम हूँ..

पर मै मै हूँ

एक स्त्री..

तेरे वजूद की वजह हूँ..

तेरे होने का एहसास भी मै ही हूँ

और तू मुझे ही परखे परंपरा की ऐनको से

हर बेडी सिर्फ तेरी सोच हैं

मैं तो ईस संसार से ही परे हूँ..

न जाने किसकी सोच की उपज हूँ

जो इतनी नेकी से तेरी परंपरा को सभाले हुए हूँ!!!!


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