समय की गति
समय की गति
एक दौड़ में शामिल हो गई थी मैं।
हासिल करना था सब कुछ जिंदगी में।
यूं ही भागते दौड़ते जान ही ना पाई
कि कब उम्र खो गई थी रास्ते में।
जब आया ख्याल तो पास में कोई भी तो ना था।
बैठी थी उसी रास्ते पर जहां से चलना शुरू किया था।।
कुछ अपने थे जो पीछे खो ही चुके थे।
नए संगी जो मिले थे वह यूं ही दौड़ रहे थे।
शांत जो बैठी तो अशांत हो गई थी।
भीड़ तो छंट गई पर जाने किसे ढूंढ रही थी।
समय की गति अब भी तेज चल रही थी।
मैं तो यूं ही बैठी थी पर सब को चलते देख रही थी।
