समय की धार
समय की धार
समय के धारों में,बहते चले जाते हैं,
बिन पाल की, नाव से हुए जाते हैं,
जीवन के रेगिस्तान, बहुत ही तपाते हैं,
वक्त के छाले, पैरों में पड़े जाते हैं.
सूख हाथों से, रेत से फिसलते जाते हैं,
हम मुट्ठी को कसकर,बाँधे जाते हैं,
यादों की दरिया में, बहते चले जाते हैं,
खुद ही रोते हैं, खुद को ही हंसाते हैं,
अश्कों के झरनों से, रोज हम नहाते हैं.
दिल के सारे गम, उसमें हम बहाते हैं,
महफिल में हंसते हैं, खिलखिलाते हैं,
मन ही मन में हम, गम को छिपाते हैं,
रिश्ते नखलिस्तांन से, फिर हमें लुभाते हैं,
जीवन की मृगमरिचिका में,हमें फँसाते हैं,
उम्र रेल की इंजन सी, दौड़ती चली जाती हैं,
यात्री सी जिन्दगी, आती है, चली जाती है..।