विशिष्टता
विशिष्टता
सुनो दिकु...
तुम्हारी मन की सुंदरता मुझे मोहित कर जाती है,
तुम्हारी करुण सरलता अनमोल खासियत जगाती है।
निश्छल हो तुम, सब का ध्यान रखती हो,
तुम्हारे बिना जीना मुश्किल हो जाता है,
मेरी जान, तुम ऐसा तो क्या जादू करती हो ?
तुम्हारे माथे की एकमात्र बिंदी से पूरा शृंगार सजाती हो,
तुम्हारी मुस्कान की चमक में ऐसा तो क्या राज़ छुपाती हो ?
अपने गुणों से दुनिया की हर रौनक फीकी करती हो,
तुम्हारी प्रतिभा के आगे हर कोई अचंब रह जाता है।
मेरी जान, तुम ऐसा तो क्या जादू करती हो ?
तुम्हारे शब्दों की अदा मेरे दिल को आनंदित कर देती है,
तुम्हारी आँखों की गहराई हरपल आकर्षित कर लेती है।
तुम्हारे साथ बिताएँ हर लम्हों को स्मर्णीय करती हो,
तुम बिन जीवन कभी पूर्ण नहीं हो सकता।
मेरी जान, तुम ऐसा तो क्या जादू करती हो ?
तुम्हारी ख़ुशबू मेरे जीवन को मधुरता देती है,
तुम्हारे प्यार की डोर हमेंशा नवीनता देती है।
तुम्हारा साथ से दिकुप्रेम के जीवन को संतुलित करती हो,
तुम बिन हर पकवान भी धतूरा-सा लगता है,
मेरी जान, तुम ऐसा तो क्या जादू करती हो ?
तुम्हारे ह्रदय में छुपी हुई है ख़ुशियों की बहार,
जिससे निकलता है केवल प्यार और सच्चाई का इज़हार।
हरपल मन के एहसासों को अपनी अदाओं से चीरकर गुजरती हो,
मन को कठोर करने पर भी प्रेम तुम्हारी ओर खींचा चला आता है।
मेरी जान, तुम ऐसा तो क्या जादू करती हो ?
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए