लत लगी अब मयखाने की
लत लगी अब मयखाने की
लत लगी अब मयखाने की
प्याला प्याला पी रहा हूँ
एक नहीं सौ बार भी मरकर
सोचों कैसे जी रहा हूँ।।
बेताबी थी मदहोशी थी
नम आंखें और खामोशी थी
इश्क़ नहीं!जाने पहचाने
बशरों की ये जासूसी थी
फिर भी चिथड़े दिल को लेकर
बैठा अब तक सी रहा हूँ
एक नहीं सौ बार भी मरकर
सोचो कैसे जी रहा हूँ
निकली मैय्यत अरमानों की
खुशियां सारी धूल बनी गई
कल तक थी सब कोमल कलियां
अचरज कि सब शूल बनी गई
नेह के इतने झरने फिर भी
अश्कों को ही पी रहा हूँ
एक नहीं सौ बार भी मरकर
सोचों कैसे जी रहा हूँ।।
लत लगी अब मयखाने की
प्याला प्याला पी रहा हूँ
एक नहीं सौ बार भी मरकर
सोचों कैसे जी रहा हूँ।।
लत लगी अब मयखाने की
प्याला प्याला पी रहा हूँ
एक नहीं सौ बार भी मरकर
सोचों कैसे जी रहा हूँ।।