गजल
गजल
अभी इस तरफ ना निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ,
मधुमिलन के पल जो साथ बिताने हैं उन्हें जेहन में उतार लूँ,
हम तो आए हैं इस महफिल में बस मेरे सनम तुम्हारे लिए,
जी करता इस महफ़िल के चाँद को अपनी आँखों में बसा लूँ,
यहाँ हमको दीवाना रहने दो हमने तो अपने होश गवां दिए,
इस दीवाने की यही चाहत बेहोशी में तेरा ही नाम पुकार लूँ,
हर शब्द उनके फूल बनकर जब झड़ते हैं उनके अधरों से,
दिल करता है उन फूलों को अपनी उजड़ी बगिया में सजा लूँ ,
दिल जीतने का हुनर ओ प्रियतम ये तुम्हें आया कहाँ से ?
तुम्हें देखता जब भी लगता बस मैं तुम्हें अपने गले से लगा लूँ ,
अनोखी - सी छुअन अश्कों से भीगा रिश्ता बेनाम सा लगता सोनी,
सोचता इस रिश्ते को एक नया नाम दूं और उसको अपना बना लूँ!