सार्थक जमाना
सार्थक जमाना
कौन कहता कि जमाना बेकार है
मौन सुन ले उर ताना बेकार है।
वक्त अनुराग सजा बैठा आस ले,
प्रेम धुन साज सुखाना बेकार है।
लाख कर कोशिश साया प्यार के,
राह चल शेष फंसाना बेकार है।
आग तन में जल पाये दीदार का,
ध्यान रख राख उड़ाना बेकार है।
दीपक जला घर फैले जी रोशनी,
क्रोध पर चीर जलाना बेकार है।
मौज करना पलकों में पानी भरे,
लोभ लत चाल चलाना बेकार है।
शूल पथ मौन मिले ले लेना उसे,
फूल वस भूल दबाना बेकार है।
