मिलन
मिलन
मिलन हो मन-मस्तिष्क का,
खिल जाए पुष्प इश्क का,
भौंर अरु पराग सी धरा,
फले फल मानव डिस्क का ।।
मिलन से मिलती शक्ति है,
अरु भाव में रस भक्ति है,
बढ़े कर सत् सारथी बन,
गगन छू ले अनुरक्ति है ।।
मिलन महौषधि जीवन का,
प्यार पुंज मन भावन का,
आशा की वह डोरी इक,
बंध जाए पल तन-मन का ।।
अंग - अंग नहीं मिलता वो,
यह तन यूं नहीं खिलता वो,
नहीं धरा जीवन होती,
नहीं डाल नभ हिलता वो ।।
प्रेम मिलन की डोली में,
पल बीते हमजोली में ,
मिले शांति अरु संगम जी,
मीठे - मीठे बोली में ।।
ईंटें मिल कर मंजिल दें,
शीतल छाया अंजलि दें,
मिलकर पोथी मंच बने,
प्यारे आ अपना दिल दें ।।
विरह वेदना होवे दूर,
कोई होवे न मजबूर,
मिलन महारथ के धारा,
जीवन बनता है अंगूर ।।
घड़ी मिलन की आयी अब,
कोयल गीत सुनायी अब,
आओ तोता मोती चुग,
मैना तुम्हें बुलायी है ।।
भक्त भजन कर मेल धरा,
चाहे हरि का खेल धरा,
कृपा कुंज जो पायें तो,
बनकर दौड़ें रेल धरा ।।
प्रिया मिलन का सपना हैं,
नव सूरत को तपना हैं,
मन मोहन के दिल आ जा,
तेरा जीवन अपना है ।।
आओ मिलन बनायें सब,
रहे भेद नहीं प्यारे अब ,
संगम धारा गंगा सी,
हरि के दर्शन होवें तब ।।
