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Rajendra Prasad Patel

Abstract

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Rajendra Prasad Patel

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आओ कुछ करते हैं

आओ कुछ करते हैं

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इस पल सबको है कुछ करना

रहें सावधान नहीं है डरना

समझ रहें हम वक्त मिला जो

सुबह टहलते जहाॅ हो झरना।।


नियत काल कर नित्य क्रिया

सहज स्वभाव घर बोल प्रिया

करें नाश्ता अरु लें ताजी चाय

सब बड़े प्रेम जो दे रही त्रिया।।


याद करें हम जीवन पथ को

साज रहें उस जीवन रथ को

जिस पर चढ़ हम जाते पार

अनुपालें नित गीता कथ को।।


मजदूर किसान चलें सब खेत

बांकी योगालय को मन लेत

मेहनत कर अरु चला पसीना

तपा तन जस रवि से है रेत।।


अधिक नहीं बस दो घंटे प्यारे

फिर चलो वृक्ष के सब छाया रे

खुले गगन के बहे पवन को ले

समझ प्रकृति की वह माया रे।। 


कुछ पल साथी कर आराम

फिर लौट चलें होअपने धाम

आस बुझे तक घड़े का पानी 

पीकर करते हम दैनिक काम।।


साबुन शोरे से करते हैं स्नान

समयानुसार होवे गीता गान

सादा ताजा भोजन लेते अरु

कुछ पल बिस्तर का मेहमान।।


खटृटा कड़वा कुछ है खाना

मन भर पानी पीकर जाना

पहर तीसरे का जानो चक्र

उगा रहें हम पेट का दाना।।


संध्या वंदन कर मन मुस्काते

घर आंगन में है दीप जलाते

सकारात्मकता के देखें सपने

जागें भोर फिर चलें निभाते।।


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